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    शिवसेना-बीजेपी दोनों कहती हैं कि हिंदुओं एक हो जाओ और खुद कुर्सी के लिए लड़ रही हैं!

    हिंदुओं के एक हो जाने का आह्वान करने वाली दोनों हिंदूवादी पार्टियां कुर्सी के लिए दस दिन से आपस में लड़ रही हैं. हिंदुओं के लिए कुर्सी की कुर्बानी देने को कोई नहीं तैयार है, लेकिन जनता से दोनों पार्टियां कहती हैं कि हिंदुओं को कुर्बानी देनी होगी.

    शिवसेना को क्या चाहिए? कुर्सी. बीजेपी को क्या चाहिए? कुर्सी. जनता को क्या चाहिए? अच्छी जिंदगी. खुशहाल नागरिकता, जिसमें अच्छा स्वास्थ्य हो, स्तरीय शिक्षा हो, सुगम परिवहन हो, हर हाथ को रोजगार हो, बिजली हो, स्वच्छ पानी हो, निर्मल वातावरण हो. लेकिन ऐसा कुछ नहीं है.

    ऐसा क्यों नहीं है? क्योंकि नेता ने आपसे कहा है कि आपको हिंदुओं का हित चाहिए और आपने मान लिया. उसने कहा कि आपको गांधी और भगतसिंह के राष्ट्रवाद की जगह हिटलर की जर्मनी वाला राष्ट्रवाद चाहिए और आपने मान लिया. उसने कहा कि आपको सेना के नाम का स्टंट चाहिए और आपने यह सब मान लिया है कि आपको यही चाहिए. इसलिए आपने देश पर पुलवामा जैसे खतरनाक हमले की जांच की मांग नहीं की और पार्टी ने कहा हमें वोट दे दो, आपने जवानों की शहादत पर वोट दे डाला. शहीद तो जवान हुए थे, पार्टी को वोट क्यों चाहिए था, आपने नहीं सोचा.

    शिवसेना हिंदूवादी है. बीजेपी भी हिंदूवादी है. दोनों कहती हैं कि हिंदुओं एक हो जाओ और खुद कुर्सी के लिए लड़ रही हैं. जब उनको सिर्फ ​कुर्सी चाहिए तो आपने ये कैसे मान लिया है कि वे आपका हित साधेंगी. आप क्या इतनी बात समझने लायक नहीं हो सके हैं कि यह जो हिंदूवादी राजनीति है, यह एक राजनीतिक विचारधारा है जिसकी अपनी कुत्सित सीमाएं हैं, इसका देश के करोड़ों हिंदुओ या मुसलमानों से कोई लेना देना नहीं है?

    यह ऐसी विचारधारा है जो देश के तमाम नागरिकों को एक दूसरे के खिलाफ खड़ा करके देश की एकता और अखंडता को खतरे में डालती है. लेकिन जब मैं कहता हूं हिंदूवाद, तो आप इसकी राजनीति को समझे बिना यह मान लेते हैं कि हिंदूवाद का मतलब है हिंदुओं का पक्ष अथवा हिंदुओं का हित.

    जबकि हिंदूवाद का सीधा और सरल अर्थ है हिंदुओं का तुष्टीकरण करके, उनकी गोलबंदी करके सत्ता हथियाना. यह मुस्लिम तुष्टीकरण का विलोम है. यह हिंदुओं के लिए सबसे घातक राजनीति का नाम है.

    नेता को सत्ता चाहिए. जनता को खूबसूरत जिंदगी. इसलिए स्वाभाविक है कि नेता राजनीति करें और लोगों को उल्लू बनाएं. लेकिन जनता को चाहिए कि वह जागरूक बने और नेता के भाषण सुनकर उल्लू न बने. जनता का फर्ज है कि वह अपने लिए, अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए खूबसूरत जिंदगी की मांग करे, जिस आदर्श प्रशासनिक व्यवस्था में खूबसूरत जीवन संभव है, उसके लिए दबाव बनाए.

    सिद्धांतत: पत्रकार का भी यही काम था कि वह जनता की तरफ से सरकार से सवाल करे और दबाव बनाए. पत्रकार कोई कानूनी या संवैधानिक पद नहीं है. पत्रकार को वही कानूनी सुरक्षा है जो एक आम नागरिक को है. लेकिन पत्रकार नेता का चम्पू बन गया है जो दिनभर चैनल पर नेता का प्रचार करता है. अब सारी बागडोर सिर्फ जनता के हाथ है. जो आपसे कह रहे हैं कि हिंदुओं एक हो जाओ, वे कुर्सी के लिए लड़ रहे हैं.

    हिंदुओं के एक हो जाने का आह्वान करने वाली दोनों हिंदूवादी पार्टियां कुर्सी के लिए दस दिन से आपस में लड़ रही हैं. हिंदुओं के लिए कुर्सी की कुर्बानी देने को कोई नहीं तैयार है, लेकिन जनता से दोनों पार्टियां कहती हैं कि हिंदुओं को कुर्बानी देनी होगी.

    शिवसेना को क्या चाहिए? कुर्सी. बीजेपी को क्या चाहिए? कुर्सी. जनता को क्या चाहिए? अच्छी जिंदगी. खुशहाल नागरिकता, जिसमें अच्छा स्वास्थ्य हो, स्तरीय शिक्षा हो, सुगम परिवहन हो, हर हाथ को रोजगार हो, बिजली हो, स्वच्छ पानी हो, निर्मल वातावरण हो. लेकिन ऐसा कुछ नहीं है.

    ऐसा क्यों नहीं है? क्योंकि नेता ने आपसे कहा है कि आपको हिंदुओं का हित चाहिए और आपने मान लिया. उसने कहा कि आपको गांधी और भगतसिंह के राष्ट्रवाद की जगह हिटलर की जर्मनी वाला राष्ट्रवाद चाहिए और आपने मान लिया. उसने कहा कि आपको सेना के नाम का स्टंट चाहिए और आपने यह सब मान लिया है कि आपको यही चाहिए. इसलिए आपने देश पर पुलवामा जैसे खतरनाक हमले की जांच की मांग नहीं की और पार्टी ने कहा हमें वोट दे दो, आपने जवानों की शहादत पर वोट दे डाला. शहीद तो जवान हुए थे, पार्टी को वोट क्यों चाहिए था, आपने नहीं सोचा.

    शिवसेना हिंदूवादी है. बीजेपी भी हिंदूवादी है. दोनों कहती हैं कि हिंदुओं एक हो जाओ और खुद कुर्सी के लिए लड़ रही हैं. जब उनको सिर्फ ​कुर्सी चाहिए तो आपने ये कैसे मान लिया है कि वे आपका हित साधेंगी. आप क्या इतनी बात समझने लायक नहीं हो सके हैं कि यह जो हिंदूवादी राजनीति है, यह एक राजनीतिक विचारधारा है जिसकी अपनी कुत्सित सीमाएं हैं, इसका देश के करोड़ों हिंदुओ या मुसलमानों से कोई लेना देना नहीं है?

    यह ऐसी विचारधारा है जो देश के तमाम नागरिकों को एक दूसरे के खिलाफ खड़ा करके देश की एकता और अखंडता को खतरे में डालती है. लेकिन जब मैं कहता हूं हिंदूवाद, तो आप इसकी राजनीति को समझे बिना यह मान लेते हैं कि हिंदूवाद का मतलब है हिंदुओं का पक्ष अथवा हिंदुओं का हित.

    जबकि हिंदूवाद का सीधा और सरल अर्थ है हिंदुओं का तुष्टीकरण करके, उनकी गोलबंदी करके सत्ता हथियाना. यह मुस्लिम तुष्टीकरण का विलोम है. यह हिंदुओं के लिए सबसे घातक राजनीति का नाम है.

    नेता को सत्ता चाहिए. जनता को खूबसूरत जिंदगी. इसलिए स्वाभाविक है कि नेता राजनीति करें और लोगों को उल्लू बनाएं. लेकिन जनता को चाहिए कि वह जागरूक बने और नेता के भाषण सुनकर उल्लू न बने. जनता का फर्ज है कि वह अपने लिए, अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए खूबसूरत जिंदगी की मांग करे, जिस आदर्श प्रशासनिक व्यवस्था में खूबसूरत जीवन संभव है, उसके लिए दबाव बनाए.

    सिद्धांतत: पत्रकार का भी यही काम था कि वह जनता की तरफ से सरकार से सवाल करे और दबाव बनाए. पत्रकार कोई कानूनी या संवैधानिक पद नहीं है. पत्रकार को वही कानूनी सुरक्षा है जो एक आम नागरिक को है. लेकिन पत्रकार नेता का चम्पू बन गया है जो दिनभर चैनल पर नेता का प्रचार करता है. अब सारी बागडोर सिर्फ जनता के हाथ है. जो आपसे कह रहे हैं कि हिंदुओं एक हो जाओ, वे कुर्सी के लिए लड़ रहे हैं.

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